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Pitru Paksha 2024: भगवान राम और कर्ण से जुड़ी है पितृपक्ष की कथा? पिंडदान का महत्व क्या है? जानें

 
Pitru Paksha 2024

Pitru Paksha 2024: हिन्दू धर्म में पितृपक्ष के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल के 365 दिनों में से 16 दिन केवल पितरों और पूर्वजों के लिए समर्पित है। जिस प्रकार सावन के महीने में भगवान शिव प्रमुख देवता के रूप में पूजे जाते हैं, उसी प्रकार पितृपक्ष पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष का महाअनुष्ठान है। आइए जानते हैं, पितृपक्ष 2024 कब से कब तक है और भगीरथ, भगवान राम, भीष्म और कर्ण से पितृपक्ष का क्या संबंध है?

कब से कब तक है पितृपक्ष 2024?

साल 2024 में पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का यह महाअनुष्ठान भादो मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या पर समाप्त होगा। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मंगलवार 17 सितंबर से शुरू होकर बुधवार 2 अक्तूबर तक चलेगा। इस बार तिथि क्षय से हुए तिथि अंतर के कारण पितृपक्ष 16 दिन की बजाय मात्र 15 दिनों का होगा। पितृपक्ष में तिथि के अनुसार, अपने पूर्वजों का तर्पण किया है, ये तिथियां आप यहां नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर देख सकते है।

पितृ-तर्पण से जुड़ी भगीरथ की कथा

पितृपक्ष से जुड़ी पहली महत्वपूर्ण कथा सतयुग में राजा भगीरथ और पवित्र गंगा नदी के अवतरण से जुड़ी है। कहते हैं, राजा सगर के 60 हजार पुत्र कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म होकर प्रेतयोनि में भटक रहे थे। राजा सगर में वंशज राजा भगीरथ ने भीषण तपस्या से स्वर्ग से देवी गंगा को धरती पर उतारा था और उनके पवित्र जल से अपने 60 हजार पूर्वजों का तर्पण किया था। तभी से हिन्दू धर्म में गंगा नदी और अन्य पवित्र नदियों में पितृ-तर्पण की प्रथा चली आ रही है।

भगवान राम ने किया फल्गु किनारे पितृ-तर्पण

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त्रेतायुग में भगवान राम ने सीता माता के संग बिहार के गया नामक स्थान पर अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया। भगवान विष्णु ने गयासुर नामक राक्षस का जिस जगह पर वध किया था, वह शहर आज गया के नाम विश्व प्रसिद्ध है। इस जगह को वरदान प्राप्त है कि यहां फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि पिंडदान पाने के बाद राजा दशरथ ने प्रकट होकर भगवान राम को आशीर्वाद दिया कि उनकी कीर्ति अनंतकाल तक बनी रहेगी।

पिंडदान और तर्पण से भीष्म को मिला ये वरदान

महाभारत कथा के अनुसार, द्वापर युग में भीष्म ने अपने पिता शांतनु सहित अपने सभी पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान किया था। कहते हैं, अपने पुत्र भीष्म की धर्म-निष्ठता और उनके सिद्धांतों पर डटे रहने से खुश होकर वरदान दिया, “हे गंगापुत्र! तुम त्रिकालदर्शी होगे और जीवन के अंत में तुमको भगवान विष्णु प्राप्त होंगे। इतना ही नहीं, जब तुम चाहोगे तभी तुम्हारी मृत्यु होगी।”

कर्ण ने मरने के बाद किया पिंडदान!

कर्ण से जुड़ी पितरों को पिंडदान की यह कथा हिन्दू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान के अनुष्ठान के महत्व को अच्छे तरीके से बताती है। कहते हैं, मरने के बाद जब कर्ण स्वर्ग गए तो उन्हें जब भी भूख लगती तो उन्हें खाने के लिए सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात ही दिए जाते। इससे परेशान होकर कर्ण ने देवताओ के राजा इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोना-जवाहरात क्यों दिया जा रहा है? तब भगवान इंद्र ने कहा कि हे कर्ण, तुमने हमेशा सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात ही दान किए हैं, कभी अपने पितरों और पूर्वजों को खाना नहीं खिलाया था। इसलिए तुम्हें खाने में ये सब चीजें दी जा रही हैं।

कहते हैं कि तब भगवान इंद्र ने कर्ण को 16 दिन की मोहलत दी कि वे फिर धरती पर जाकर अपने पितरों और पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कर के आएं। मान्यता है कि इसके बाद जब पितृपक्ष शुरू हुआ, तब कर्ण को वापस से धरती पर भेजा गया। पितृपक्ष के उन 16 दिनों में कर्ण ने श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया। उसके बाद उनके पूर्वज खुश हुए और कर्ण पितृदोष से मुक्त होकर वापस स्वर्ग आए।