{"vars":{"id": "116879:4841"}}

Sawan 2024: कहां से हुई बेलपत्र की उत्पत्ति? क्यों भगवान शिव को है प्रिय? जानें सबकुछ

जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु को जैसे तुलसी के पत्ते प्रिय हैं, ऐसे ही देवाधिदेव शंकर को बेल के पत्ते काफी प्रिय हैं।
 

Sawan 2024: जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु को जैसे तुलसी के पत्ते प्रिय हैं, ऐसे ही देवाधिदेव शंकर को बेल के पत्ते काफी प्रिय हैं। कहा जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा में बेलपत्र जरूर चढ़ाने चाहिए।

लड्डू या कोई अन्य वस्तु की जगह अगर कोई सच्चे मन से बेलपत्र की एक टहनी भी शिव को अर्पित कर दे तो भगवान उनकी पूजा स्वीकार कर लेते हैं और मनचाहा फल देते हैं।
 
मान्यता है कि बाबा भोलेनाथ को बेल की पत्तियां, फल और फूल सहित इसकी लकड़ी और छाल भी प्रिय है। साल 2024 में भगवान शिव की पूजा और उपासना को समर्पित सावन का पवित्र महीना 22 जुलाई से शुरू हो रहा है। आइए इस पावन महीने के उपलक्ष्य में जानते हैं, बेलपत्र की उत्पत्ति की कथा और शिवजी के पूजा में इसका महत्व।

कहां से हुई बेलपत्र की उत्पत्ति?

स्कंद पुराण में एक प्रसंग मिलता है कि एक एक बार देवी पार्वती को जब ललाट पर पसीना आया तो उन्होंने पसीने को अपनी अंगुलियों से पोंछकर फेंक दिया। उनकी पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं। कहते हैं, उन बूंदों से बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ।

मान्यता है कि बेल वृक्ष के पत्तों में स्वयं देवी पार्वती और वृक्ष के अलग अलग हिस्सों में माता पार्वती के विभिन्न रूपों का वास होता है।

बेलपत्र से क्यों प्रसन्न हो जाते हैं भगवान शिव?

बेल के पत्तों में मां पार्वती का वास होने के कारण बेलपत्र को भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। मान्यता है कि जो भक्ति किसी तीर्थस्थान पर जा पाने में असमर्थ हैं, वे यदि सावन के महीने में बेल के पेड़ की पूजा कर उनमें जल अर्पित करते हैं, तो उसे मंदिर या शिवालय में शिवलिंग के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।

यह भी कहा जाता है कि सागर मंथन के बाद निकले कालकूट विष का पान करने के बाद जब भगवान शिव के शरीर में अत्यधिक जलन और पीड़ा हो रही थी, तब देवताओं ने इसके उपचार के तौर पर शिवजी को बेलपत्र खिलाना शुरू किया। 

कहते हैं, बेलपत्र की शीतलता और विषरोधक प्रभाव से भगवान शिव को बहुत आराम मिला। तभी से उन्हें बेलपत्र अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है। बता दें, कि बेलपत्र की तीन पत्तियों को शिवजी के त्रिशूल और उनके त्रिनेत्र का भी प्रतीक माना जाता है।